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देह हुई फागुन / सोम ठाकुर
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देह हुई फागुन तो क्या हुआ
रे मितवा
मनवा तो सावन -सावन रहा
इतना विश्वास किया अपनो पर
चंद्रमा रखा हम ने सपनों पर
हम को जाग की चित्तरसारी में
हर चेहरा दर्पण -दर्पण रहा
रे मितवा
देह हुई फागुन तो क्या हुआ
बस इतना ही धरम --करम भाया
अपनाया जो जीभर अपनाया
हमको तो सदा प्रेम -मंदिर का
हर रजकन चंदन -चंदन रहा
रे मितवा
देह हुई फागुन तो क्या हुआ
कौन रखे याद इस कहानी को
कहाँ मिले शरण आग पानी को
गुँथी हुई बाँहों में मुक्ति मिली
बाकी सुख बंधन -बंधन रहा
रे मितवा
देह हुई फागुन तो क्या हुआ