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देह / दिलीप शाक्य

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किसी हसीन फूल की तरह
उमगना था
देह को
बहना था पहाड़ी दर्रों के बीच
किसी रुपहली झरने-सा

उदास
कमरे में पड़ी है शिथिल
किसी उतरे हुए लिबास की तरह