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दे के आवाज़ ग़म के मारो को / सरदार अंजुम
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दे के आवाज़ ग़म के मारो को
मत परेशाँ करो बहारों को
इनसे शायद मिले सुरागे-हयात
आओ सज़दा करें मज़ारों को
वो ख़िज़ा से है आज शर्मिन्दा
जिसने रुसवा किया बहारों को
दिलकशी देख कर तालातुम की
हमनें देखा नहीं क़िनारों को
हम ख़िज़ा से गले मिले "अंजुम"
लोग रोते रहे बहारों को