दे दिया दर्द हुस्न वाले ने।
खामखां फिर हिजाब वाले ने।।
दोष मत दीजिये अँधेरों को,
काम सारा किया उजाले ने।।
यूँ कहा जा रहा हूं अब बाहर,
हाथ से छूटकर निवाले ने।।
पीर मस्जिद की देखकर आखिर,
दोस्ती कर लिया शिवाले ने।।
खूब डाली सहेज कर रखी,
जुल्म सहकर भी बाग वाले ने।।
रास्ता रोक कर रखा अपना,
पाँव के जख्म और छाले ने।।
लोग काफिर जिसे समझ बैठे,
जिन्दगीं दी उसी जियाले ने।।