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दोऊ जने लेत लतन की ओटें / बिन्दु जी
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दोऊ जने लेत लतन की ओटें।
कछु पुरवाई चलत घन गर्जत, कुछ बदन की चोटें।
डरपति सिय, पट छाँह करत पिय, बाँधि भुज की कोटें॥
उत फहरत पचरंगी पगिया इत चूनर की गोटें।
यह छवि लखि दृग ‘बिन्दु’ प्रिया प्रीतम के पाँय पलोटें॥