भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोघड़ चिंता / राजूराम बिजारणियां

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कूख हुई हळचळ
खूणां-खूणां
सरू होयगी
खुसरपुसर!

तिल-तिल करतां
तोळा-मासा
सांस सुळझतां
संवरै माटी...

नित घड़ीजै गोडां
खिंडतो-मंडतो भाग

लिखीजै
अणदीठ रो फैसलो
गिणती में
सामल होवणै सूं पैलां.!

मा...
मून है.!
भरोसो करयां भाग माथै।

अर भाग...
भुंवाळी खावै.!!