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दोनों किनारों के बीच यात्रा / नरेश अग्रवाल

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दोनों किनारों पर बर्फ जमी है
बीच में ठंडा पानी बहता हुआ
एक नाव है छोटी सी जिस पर हम सवार
धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए
धीरे-धीरे पेड़ों की सघनता घटती हुई
और पहले से तेज दिखाई देती है चाँद की रोशनी
आस-पास सब कुछ सफेद है यहाँ
दूरियाँ उलझी हुई छाया की तरह
ठंड से ठिठुरते हैं पाँव
नाव को कोई फर्क नहीं
एक आवाज पानी के बहने की
दूसरी हमारी साँसों की
किनारे बिल्कुल चुपचाप
सामने चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़
जैसे हमें पहुँचना है वहाँ तक
इस पतली सी नदी का विस्तार दूर तक
लेकिन थक जाएँगे हम
रूक कर फिर यात्रा शुरू करेंगे कल।