दोसरो सर्ग / कैकसी / कनक लाल चौधरी 'कणीक'
दोसरो सर्ग
रथ में लाधि दोन्हूं के शव केॅ सारथि दोनों भाय
माल्यवान, सुमाली रथ लै भागी लंका जाय
राजभवन में जब दोन्हूं के लाश पहुँचलै जेन्हैं
रानी सुकेशीं पुतहू सुनयनां रुदन पसारै तेन्है
छाती पिटि-पिटि कानै सुकेशी लिपटि सुमेल के लाश
सुनयना माली के पत्नीं जियै के छोड़ै आस
जबेॅ सुनयनां माली के युद्धोॅ के कथा सुनलकी
गरव सें वें नें सीना फुलैनें एकटा निर्णय लेलकी
इन्द्र हराबै वाला पति केॅ पत्नी होय केॅ अर्थ
सती बनना ही करतब रहलै बाँकी जिनगी व्यर्थ
करि केॅ खूब सिंगार सुनयना चिता माली पर लेटी
होली सती, सुकेशी थमाय केॅ एक दुधमुँही बेटी
कुछ दिनों के बाद रूकी लंका पर कहर बरपलै
लंका असुरहीन करबैलेॅ देव सैन्यबल जुटलै
सब असुरा तबेॅ जान बचाबै खातिर भागेॅ लागलै
वेशी गेलै पतालोॅ तरफें बॉकी धरां नुकैलै
राजमहल होलै तबेॅ खाली जान बचावै लेली
बेटा, पोती आरो पुतहुवोॅ संगे सुकेशी चलली
भागी केॅ उत्तर दिश बढ़ली पाबै लेलि ठिकानोॅ
माल्यवान संग पूत सुमाली रहै सुरक्षित दोनों
बहुत खोज पर वै सभकेॅ इक गुप्त ठिकानोॅ मिललै
सौंसे टा परिवार वहीं ठो जग्घा में रहेॅ लागलै
माली-सुनयना के दुधमुँहियाँ बेटी कैकसी बढ़ली
सुकेशी के पालन-पोषण से कुछु ऊपर चढ़ली
बड़ी प्यार सें दादी सुकेशी पोती कैकसी पालै
दुअरिया में शिक्षा दै-दै बुद्धि-ज्ञान भरि डालै
दादी संगें रही कैकसी भेली खूब छरहरी
बोलै-बाजै, तरक करै में सभ्भै पेॅ पड़ै भारी
बिना गुरु के ज्ञान केतनोॅ काटै दाँत सुकेशी
वेद शास्त्र बिन पढ़न्है केनां तरक देखावै वेशी
धरम शास्त्र के नेम-नीति केना केॅ कैकसी जानै
बातचीत के मर्यादा केॅ केनां वें पहिचानै
है सभ प्रश्नोॅ के उत्तर, लेली दादी ठो जूझै
मगर बड़ी माथा-पच्ची पर फेनूं नैं कुछ सूझै
पता नहीं है पूर्व जन्म के होती बड़ी विदूषी
हौ संस्कार साथ लेनें इ गइय सुनयना घूंसी
कैकसी केरोॅ सवालेॅ बड़ पंडित के निरूत्तर पाबै
मतर पंडितोॅ के सवाल वें चुटकी में निबटावै
इ रंग ओकरोॅ तेज देखि केॅ माल्यवान मुस्कावै
कैकसी के है रुप-रंग लखि बहुत मनसुवा लाबै
मन में कत्तेॅ भाव उतरलै केनां खेपैतै नैय्या
माली केॅ नै पूत, निपुत्तर बनलोॅ छी दोनों भैय्या
दोन्हूं केॅ बस दू-धुक बेटी पाँच बेटी परिवारें
वंश केनां के चलतै आगू मन मारै छै विचारें
हमरोॅ कुल तेॅ लगै बिलैलोॅ कुछ तेॅ करै लेॅ पड़तै
कोय जतने परिवार ठो हमरोॅ जैसे-तैसें बढ़तै
सोचते-सोचतें माल्यवान केॅ एक उपाय सुझैलै
कैकसी केॅ केन्द्रित करि हौ वै विन्दु पर ही उतरलै
पुष्पोत्कटा केॅ कोइयो लूर नैं, राका निपट अनाड़ी
हमरोॅ बेटी छै दोनों तेॅ खीच्है नैं पारती गाड़ी
निकवा मालिनी दोनों बहिनां सुमाली सुकुमारी
एक तेॅ छै अति भोली पुजारिन दोसरोॅ आलसी भारी
यै चारहू सें पूत जे होतै नैं तेजस्वी बंका
वै सब केॅ सामर्थ्य नै होतै कब्जावै लेॅ लंका
कैकसी ही बस एकमात्र आशा के किरण दिखावै
रक्ष वंश आरी रक्ष संस्कृति जें पटरी पर लाबै
हर पहलू पर गौर करि फिन कैकसी लग हौ गेलै
मन के सभटा बात खोलि हौ चिन्ता मंे पड़ि गेलै
माल्यवान केॅ चिन्तित देखी कैकसी तुरत ढरकली
हर बातोॅ पर सहमति दे हौ काका संगें चलली
बहुत काल धरि चाचा-भतीजी ढूंढै ऐसनोॅ बंका
जें कैकसी केॅ पूत दै एन्हों, जौनें जीतै लंका
कैकटा बलशाली राजा लग, कैकसी लै केॅ जाबै
मगर सभैं ने माल्यवान केॅ दुत्कारी केॅ भगाबै
धरती आरो पाताल छानि दोऊ चलतें-चलतें थकलै
माल्यवान के सब मनसूबा निष्फल होतें गेलै
कैकसी केॅ घर भेजि केॅ कक्का सोच फिकर में पड़लै
आखिर थक थकाय केॅ हौ एक गाछी तरोॅ में बैठलै
माथोॅ पकड़ी माल्यवान फिन नद्दी तरफ निहारै
हिरणमयी के तट पर देखी एक ऋषि कॅ विचारै
के होतै, यै निर्जन तट पर जहाँ नै कोइयो नहाबै
देखी उनठां एक ठो कुटिया कुछु-कुछु समझ में आबै
अवशि यहाँ कोय ऋषि-मुनि होतै जाय नगीच निहारौं
देखवै कोइयो आड़ लैकेॅ ओकरा पहिचाने पारों
है सोची केॅ आड़ लेने हौ गेलै बहुत नगीच
ऋषि पहचान ने ओकरा पुरानोॅ सोचें लेलकै खींच
अरे, हिनी तेॅ ऋषि विश्रवा सकल ज्ञान के सागर
वेद-शास्त्र में पारंगत मुनि करम काण्ड में आगर
हिनकोॅ पिता प्रजापति वंशी ऋषि पुलस्त्य कहाबै
ब्रह्मदेव कुल के रहला सें सकल लोक केॅ भावै
वरवर्णिनी हिनकोॅ अर्धांगिनी भरद्वाज सुकुमारी
पुत्रा बैश्रवण जे कुबेर धन-दौलत के अधिकारी
पुत्र कुबेर रोॅ ऋद्धि पत्नी मुनि आशीष लै आबै
नलकूवर, मणिग्रीव पौत्र भी सथैं आनि देखावै
दोसरी पत्नी इडविडा भेली नृप तृणविन्दु जात
एत्ते टा परिवार छै हिनकोॅ जेकरा सें छै नाता
हिरणमयी तट कुटिया राखी असकर मुनि केॅ लेखी
माल्यवान फिनु सोचेॅ लागलै सभ्भे परिस्थिति देखी
सोचै, केन्हौं केॅ जों कैकसीं आबी मुनि पटियावेॅ
रतिदानों केॅ ग्रहण करी जों ऋषि तेज के पाबेॅ
तेॅ फिनु लुप्त असुर वंशोॅ केॅ हुए सकेॅ उद्धार
कैकसी पर ही आशा टिकलोॅ जीत या कि फिन हार
है सोची केॅ माल्यवान फिन अैलै कैकसी पास
सबटा सोच सुनैलकै ओकरा मन में लै कुछ आस