भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोस्ती पर कुछ तरस खाया करो / ओम प्रकाश नदीम
Kavita Kosh से
दोस्ती पर कुछ तरस खाया करो ।
बेज़रूरत भी कभी आया करो ।
सोचो मैंने क्यों कही थी कोई बात,
हू-ब-हू मुझको न दोहराया करो ।
रोशनी के तुम अलमबरदार हो,
रोशनी में भी कभी आया करो ।
बर्फ़ होता जा रहा हूँ मैं ’नदीम’
मेरे ऊपर धूप का साया करो ।