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दोस्ती / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
Kavita Kosh से
दोस्तों एक राह पर साथ चलना नहीं होता
ये अहसास का सफ़र है पूरा नहीं होता
दोस्तों किसी बासीपन को लेकर नहीं चलती
इसकी राह में कोई कदम पुराना नहीं होता
दर्द जिसका चाँद-सा हो खुशी समंदर-सी
इसकी दोस्ती से कोई जहाँ बाकी नहीं होता।
ज़िंदगी की नर्सरी में हज़ार रिश्ते हैं
दोस्ती की महक वाला कोई रिश्ता नहीं होता
दर्द से लबरेज दोस्त है वादे मत करो
सामने चुप खड़े रहना कुछ काम नहीं होता