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दोस्तों से बात कहना भी नही आता हमें / मनोहर विजय

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दोस्तों से बात कहना भी नही आता हमें
ग़म भुलाने का तरीक़ा भी नही आता हमें

दर्द का अहसास भी उनको दिलाएँ किस तरह
चोट खाकर तो तड़पना भी नही आता हमें

जान खो बैठें न इक दिन करके हम नादानियाँ
दुश्मनों से तो निपटना भी नही आता हमें

हम बता देते हैं वह जो पूछते हैं प्यार से
क्या करें कोई बहाना भी नही आता हमें

खे़ल क्या-क्या ख़ेलते हैं लोग झोंकों की तरह
सूरत-ए-मौसम बदलना भी नही आता हमें

किस तरह दुनिया यकीं कर ले हमारी बात का
झूठ को तो सच बनाना भी नही आता हमें

बात उनसे क्या करेंगें हम मुहब्बत की ‘विजय’
उनसे आँख़ें तो मिलाना भी नही आता हमें