दोस्तों से विदा / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय
अलविदा दोस्तो ! अलविदा !
तुम सब बसे हो मेरे दिल में गहरे कहीं
और दिमाग में हैं हमारे वे काम
जिनके लिए लड़ रहे हैं हम बहादुरी से ...
अलविदा दोस्तो ! अलविदा !
कतारबद्ध मत हो पक्षियों की तरह
क्या है इस जड़े हुए नक़्शे में
नाक से नाक मिलाए खड़े हो साथ-साथ ...
रुमालों को हिलाने की ज़रूरत नहीं ...
तुम सब मुझे ढूँढ़ लोगे पूरी तरह
अपने ही पास अपनी आँखों में प्रतिबिम्बित ...
आह, दोस्तो, युद्ध में, काम पर —
आह, साथियो, आह ... अलविदा !
विदा दो बिना शब्द ... तुम सब बसे हो मेरे दिल में गहरे कहीं ...
मेरे दरवाज़ों के भीतर वे ढकेल रहे हैं रातों को
साल-दर-साल खिंच रहा है खिड़की पर एक नक़्शा
और मैं गा रहा हूँ अपना बन्दीगान
जैसे गा रहा हूँ युद्धगान कोई :
हम फिर मिलेंगे, दोस्तो !
बैठेंगे फिर साथ-साथ ... तुम सब और मैं
सूरज पर हँसेंगे एक साथ ... सच्चाई के लिए लड़ेंगे साथ-साथ ...
आह, दोस्तो ! युद्ध में, काम पर —
आह, साथियो ! आह ... अलविदा !
1932
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय