भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोस्तो, कुछ हादसे ऐसे हुए / डी .एम. मिश्र
Kavita Kosh से
दोस्तो, कुछ हादसे ऐसे हुए
अजनबी होकर भी वो अपने हुए
पर ,सफल केवल वही बंदे हुए
जो किसी दरबार के चमचे हुए
देश में उनकी ही आबादी बढ़ी
आँख वाले हो के जो अंधे हुए
वक़्त अपना था बुलंदी पर कभी
आज हम गुज़रे हुए किस्से हुए
कल तलक मिलते थे कितने प्यार से
आपके सुर आज क्यों बदले हुए
एक मुद्दत से थी ख़ामोशी यहाँ
उनके आ जाने से फिर जलसे हुए
आचमन करना भी मुश्किल हो गया
इस नदी के घाट सब गंदले हुए