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दोस्त अहबाब की नज़रों में बुरा हो गया मैं / शहरयार
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दोस्त अहबाब की नज़रों में बुरा हो गया मैं
वक़्त की बात है क्या होना था, क्या हो गया मैं।
दिल के दरवाज़े को वा रखने की आदत थी मुझे
याद आता नहीं कब किससे जुदा हो गया मैं।
कैसे तू सुनता बड़ा शोर था सन्नाटों का
दूर से आती हुई ऎसी सदा हो गया मैं।
क्या सबब इसका था, ख़ुद मुझ को भी मालूम नहीं
रात ख़ुश आ गई, और दिन से ख़फ़ा हो गया मैं।
भूले-बिसरे हुए लोगों में कशिश अब भी है
उनका ज़िक्र आया कि फिर नग़्मासरा हो गया मैं।
शब्दार्थ :
वा=खुला