भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोस्त जो इन दिनों मेरे नाम चिढ़ जाते हैं / शिव रावल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं जो अंजाम की राह तकता हूँ, मुझे लोग क़यामत के नाम से डराते हैँ
नादाँ हैं जो पर्वतों को मारने के लिए पत्थर उठाते हैँ

जिनकी जेबें भरी रहती हैँ तमाशों से
वो मुझे तहज़ीब से पेश आना सिखाते हैँ

हलके से हवा के झोंके से धुंधला जाती हैँ आँखें यहाँ फौलदियों की
और मेरे आँगन से तूफां रोज़ आते हैं, जाते हैँ

वाकिफ़ ज़माने से सीखने जाता हूँ मैं जब दुनियादारी की बातें
मेरे ही किस्से कुछ वाइज़ मुझी को सुनाते हैँ

सुना हैं आजकल महफ़िलो में मायूस नज़र आते हैं सब रक़ीब मेरे
दोस्त जो इन दिनों मेरे नाम से चिढ़ जाते हैँ

सुना है मोहब्बत भी ढूँढती फिरती हैं हमें अब ग़ुमनामी में
जिसकी तलाश में मेरे गुजरे ज़माने सरेआम शोर मचाते हैँ

तुम्हारी की बर्बादी मांगने वालों की दुआएँ तो कब की क़बूल हो जाती 'शिव'
पर सुना है के रोने भी इनके खुदा तुम्हारी क़ब्र पर आते हैँ

कहाँ जाएँ किस से जाकर कहें परेशानी है हरदम
तुम्हारी याद है यूँ तो रोज़ की तरह, पर कसम से आज बहुत सता रही है "शिव"