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दोस्त मुफ़लिस को बना कर देखो / कैलाश झा 'किंकर'

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दोस्त मुफ़लिस को बना कर देखो
वो निभाएगा, निभा कर देखो।

बात छोटी तो नहीं यह हरगिज़
ऐसा मसला भी उठा कर देखो।

कैसे बदलाव नहीं आयेगा
सोये लोगों को जगा कर देखो।

रोज तिकड़म में रहा करता जो
उससे दूरी तो बढ़ा कर देखो।

जो मुहब्बत की समझ रखते हैं
उनसे टकराव मिटा कर देखो।

कैसे भारत में ज़हर घोलेगा
उसको औकात बता कर देखो।

इतने वर्षों से ठगा बहुरुपिया
उसको पलकों से गिराकर देखो।

जिसने बेटी पर जुलुम ढाया है
उसको फाँसी पर चढ़ा कर देखो।