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दोहावली-10 / बाबा बैद्यनाथ झा

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जितना संभव हो करें, हरदम अच्छे कार्य।
आप बनें सबके लिए, अनायास स्वीकार्य॥

जिनसे सीखा है कभी, एक वर्ण का ज्ञान।
रह कृतज्ञ मैं मानता, उनको ब्रह्म समान॥

कह लो जो कहना तुम्हें, अपने मन की बात।
पर ऐसा कुछ मत कहो, जिससे हो आघात॥

आया पूरे विश्व में, ईसाई नव वर्ष।
मना रहे उत्सव सभी, पाकर अनुपम हर्ष॥

शादी श्रेष्ठ परम्परा, हो समुचित निर्वाह।
सबको करना चाहिए, वैदिक रीति विवाह॥

आया साल अठारवाँ, जवां हुई तारीख़।
अब युवती को दीजिए, वर चुनने की सीख॥

मानव मन परिणत हुआ, स्वार्थी जैसे दैत्य।
आपस में सब लड़ रहे, संभव नहीं मतैक्य॥

भूलें आप अतीत को, सम्प्रति पर दें ध्यान।
केन्द्रित हों साहित्य पर, भला करें भगवान॥

हरदम जो जपता रहे, शिव का मंगल नाम।
उनके दर्शन मात्र से, पूरे हों सब काम॥