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दोहावली-3 / बाबा बैद्यनाथ झा

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शब्द-शब्द को जोड़कर, तुझसे है गठजोड़।
हे प्रिय कविता कामिनी, तू मुझको मत छोड़॥

रिश्ता जो है खून का, उसे न कर बेकार।
सहोदरों को बाँटकर, मत खींचो दीवार॥

वृद्धावस्था जानिए, स्वयं एक है रोग।
भक्तिमार्ग पर अब चलें, बहुत किया है भोग॥

आया खाली हाथ था, जाना खाली हाथ।
फिर घमंड किस बात का, जाएगा क्या साथ॥

शीशा ले जज़्बात का, जाऊँ मैं किस गाँव।
शब्दों का पत्थर लिए, लोग खड़े हर ठाँव॥

अवगुण होता एक ही, श्रेष्ठ जनों के पास।
किसी व्यक्ति पर बेवजह, कर लेते विश्वास॥

इच्छाएँ मरती नहीं, इनके रूप अनंत।
जो इच्छा को जीत ले, असल वही है संत॥

वैसे हैं बिखरे पड़े, सुन्दर मार्ग विभिन्न।
प्रतिभाषाली छोड़ते, हैं अपना पदचिह्न॥

शादी को बस मान लो, बिजली के दो तार।
सही जुड़े तो रोशनी, गलत जोड़ दे मार॥