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दोहावली-8 / बाबा बैद्यनाथ झा

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फागुन के प्रारम्भ में, सबके मन उत्साह।
भ्रमरों के गुंजार की, कलियाँ देखे राह॥

मिलते नायक-नायिका, हो जाता संयोग।
कवि बन जाता एकदिन, सहकर दुसह वियोग॥

जितना पाया आपसे, बाँट सकूँ सद्ज्ञान।
मातु शारदे कर कृपा, कभी न हो अभिमान॥

आता है मधुमास तो, पतझड़ के ही बाद।
दुख में करते लोग हैं, बीते सुख को याद॥

कुण्डलियाँ होतीं सदा, सचमुच ही बेजोड़।
कहता हूँ मैं ठाठ से, मिले न इनका तोड़॥

सेवा में जबतक रहा, नहीं पड़ा बीमार।
पर उसके कुछ बाद ही, गया ज़िन्दगी हार॥

जिसके संचित पुण्य से, बेटी दे भगवान।
उसके आदर मात्र से, बढ़ जाता सम्मान॥

होली आयी इसलिए, हमसब झूमें आज।
वैरभाव सब भूलकर, पुलकित सकल समाज॥

राधा रानी खेलती, वृन्दावन में फाग।
बनी कृष्णमय आज वह, बाँट रही अनुराग॥