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दोहावली / तुलसीदास/ पृष्ठ 22

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दोहा संख्या 211 से 220

नाम सत्रुसूदन सुभग सुषमा सील निकेत।
सेवत सुमिरत सुलभ सुख सकल सुमंगल देत।211।

कौसल्या कल्यानमइ मूरति करत प्रनाम ।
सगुन सुमंगल काज सुभ कृपा करहिं सियराम।212।

सुमिरि सुमित्रा नाम जग जे तिय लेहिं सनेम।
सुअन लखन रिपुदवन से पावहिं पति पद प्रेम।213।

सीताचरन प्रनाम करि सुमिरि सुनाम सुनेम।
होहिं तीय पतिदेवता प्राननाथ प्रिय प्रेम।214।

तुलसी केवल कामतरू राचरित आराम।
कलितरू कपि निसिचर कहत हमहिं किये बिधि बाम।215।

मातु सकल सानुज भरत गुरू पुर लोग सुभाउ।
देखत देख न कैकइहि लंकापति कपिराउ।216।

सहज सरल रघुबर बचन कुमति कुटिल करि जान।
चलइ जोंक जल बक्रगति जद्यपि सलिलु समान।217।

दसरथ नाम सुकामतरू फलइ सकल कल्यान।
 धरनि धाम धन धरम सुत सदगुन रूप निधान।218।

तुलसी जान्यो दसरथहिं न सत्य समान।
रामु तजे जेहि लागि बिनु राम परिहरे प्रान।219।

राम बिरहँ दसरथ मरन मुनि मन अगम सुमीचु ।
तुलसी मंगल मरन तरू सुचि सनेह जल सींचु।220।