दोहावली / संजय चतुर्वेद
तिकड़म सखियाँ जीवन सतगुरु दोनों में घमसान हुआ
सखियन मार भगाया सतगुरु ये कैसा मैदान हुआ
2003
कल्चर की खुजली बढ़ी जग में फैली खाज
जिया खुजावन चाहता सतगुरु रखियो लाज
2003
सखी पन्थ निर्गुन सगुन दुर्गुन कहा न जाय
सखियन देखन मैं चली मैं भी गई सखियाय
2003
छन्द भए बैरी परम दन्द-फन्द अनुराग
सतगुरु खटकै आंख में ऐसा चढ़ा सुहाग
2003
चिन्तक बैठे घात में लिए सुपारी हाथ
जो सर्किट पूरा करै सो चलै हमारे साथ
2003
सर्किट ने सर्किट गह्यौ सो सर्किट बोल्यौ आय
जो सर्किट बोल्यौ चहै तौ सर्किट निकस्यौ जाय
2003
कौन वतन साहित्य का कौन गली का रोग
कौन देस सें आत हैं सर्किट बाले लोग
2003
कनक सरवरी चढ़ गई सदासिन्धु जलजान
गद्य पद्य सुख मद्य है मत चूकै चौहान
2003
खुसुर पुसुर खड़यंत्र में फैले सकल जुगाड़
निकल रही यश वासना तासें बंद किबाड़
2003
सरबत सखी जमावड़ा गजब गुनगुनी धूप
कल्चर का होता भया सरबत सखी सरूप
2003
सरबत सखियन देख कै लम्पट रहे दहाड़
करै हरामी भांगड़ा सतगुरु खाय पछाड़
2003
कविता आखर खात है ताकी टेढ़ी चाल
जे नर कविता खाय गए तिनको कौन हवाल
2003
जनता दई निकाल सो अब मनमर्जी होय
मन्द-मन्द मुस्काय कवि कविता दीन्ही रोय
2003
लाली मेरी चाल की जित देखौ तित आग
जिसने कपड़ा रंग लिया सो धन-धन ताके भाग
2003
कवियन के लेहड़े चले लिए हाथ में म्यान
इत फेंकी तलवार उत मिलन लगे सम्मान
2003
ँची कविता आधुनिक पकड़ सकै ना कोय
औरन बेमतलब करै खुद बेमतलब होय
2003