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दोहा-गीत / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
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सूरज से हमने कहा – जोत भरो हर ओर
दूर करो अँधियार जो पसरा हुआ अछोर
सूरज बोला – स्वयं का तो मेटो अँधियार
हिरदय की बानी सुनो – बाकी बोल असार
अंतर्मन की
जोत ही उजियारेगी भोर
व्यापा सगरे विश्व में सपनों का व्यापार
गुन गाते बस हाट के अबके सब अखबार
घिरे हुए हैं
स्वार्थ के ही मेघा घनघोर
इक-दूजे से अज़नबी हुआ सकल संसार
अंधकूप जो हुआ मन – खोलो उसके द्वार
उजली होगी
तभी तो साँसों की हर कोर
दिन अंधे-बहरे हुए – हुआ समय ही जार
बहने दो जो नेह की भीतर बहती धार
मन्त्र बनाओ
प्राण को – उसे न व्यापे शोर