भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-13 / दिनेश बाबा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

97
नै राधा नैं कृष्ण छै, नै गोकुल रं गाम
कंस लखाबै छै सभे, बदलल छै बस नाम

98
तीरंदाजी में रहै, जना कर्ण आ पार्थ
ढ़ूँढो द्रोणाचार्य फनु, हुवै विगत चरितार्थ

99
‘बाबा’ अभी समाज रो, बदली गेलै रीत
वत्र्तमान में रहो मतर, भूलो नहीं अतीत

100
आजादी के बाद ही, जत्ते बढ़लै चीन
भारत केॅ भी चाहियो, तोड़ै अपनो नीन

101
एक कांस्य या रजत सें, कत्ते खुश छै लोग
होना तेॅ ई चाहियो, खेल बनै उद्योग

102
जिनगी में सबकेॅ कहाँ, मिलेॅ सकै छै प्यार
जीतै के हिम्मत रखो, कभी न होथौं हार

103
एक उदाहरन छै अभी, आॅट्रेलियन क्रिकेट
खेलो सें सब टीम के, करकै मटिया मेट

104
एक बेर डोलै जहाँ, छै ककरो विश्वास
हौ योद्धा खुद आपनो, करतै सत्यानास