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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-14 / दिनेश बाबा
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105
जे बुतरू एक्को दफा, पकड़ी लै छै स्लेट
अतना इलम पाबै छै, ताकी पालै पेट
106
कोय गुदानै छै कहाँ, जब स्वारथ टकराय
बिन पैसा लागै जना, हाथ हिया हेराय
107
लोग गुदानै छै तभी, जब देखै छै माल
दुनियाँ में ‘बाबा’ सभे, खाँटी छिकै दलाल
108
हारी केॅ भी जीततै, जौनें करै प्रयत्न
जें गोंता नैं मारतै, वें की पैतै रत्न
109
धन-दौलत लेली करो, कत्तो मंतर जाप
हुवै परापत जब कटै, तकदीरो के शाप
110
तृष्ना के मिटलो बिना, मिटै न धन के चाह
इच्छा, धन, संताप छै, चलो सत्य के राह
111
न्याय मिलै में देर भी, सच में छै अन्याय
संविधान के झोल हय, साफे-साफ लखाय
112
महानगर के कामिनी, कातिल रखै निगाह
रूप सुन्दरी सब लगै, घूमै बेपरवाह