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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-17 / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
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जिस्म दिखाबै के चलन, मन मोहै के ढंग
सेक्सी लागै लेॅ कुड़ी, पीन्है कपड़ा तंग
130
रोजी-रोटी के अगर, हुहौं न कोय जुगाड़
कविताई सें छै बलुक, ‘बाबा’ झोंको भाड़
131
कविता में होथौं अगर, ‘बाबा’ कुछ एसेंस
श्रोता नैं उकताय छै, राखै छै पेशेंस
132
‘बाबा’ खल के दोसती, दुखी करै छै रोज
आँख शरारत करै छै, दाबल जाय उरोज
133
दुस्टोॅ के संगत सदा, दुःखी करै छै हाय
नैन इशारा करै छै, वक्ष उमेठल जाय
134
मेढ़क बीहा करै लेॅ, गेलै बूढ़ानाथ
बोॅर वरी केॅ मेढकी, चलल बराती साथ
135
बेंगें खूब उछाह सें, करकै सिंदुरदान
शंख बजैलक पंडितंे, झिंगुर करकै गान
136
वृंदावन दर्शन करौं, वैष्णो देवी जाँव
आ कोनो नैं लालसा, पुष्कर कभी नहाँव