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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-19 / दिनेश बाबा

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145
दुर्गा, काली, सरोसती, बिहुला केरोॅ नाम
रकम वसूली छै यहाँ, कुछ लोगोॅ के काम

146
देखी केॅ झूमै कृषक, करै फसिल पर नाज
पुलकित होय छै मोन कि, होतै खूब अनाज

147
पंछी ऐलै चुगी के, होलै दिवस तमाम
कल के कल पर छोडकै़, लै लेलकै विश्राम

148
‘बाबा’ के तेवर जहाँ, लागै बड़ा गुस्सैल
बीबी के भीरी मतर, बनी जाय छै बैल

149
कृष्ण-पार्थ के बीच अब, रहलै कहाँ सुगंध
जरासंध, शिशुपाल मंे, होलो छै अनुबंध
150
जीना मजबूरी छिखौं, मुँह ठो राखो बंद
पृथ्वीराज आबेॅ कहाँ, छै केवल जयचंद

151
दुहशासन, दुरयोधनी, होय रहल छै न्याय
भीम, धनंजय वीर रं, नै छै पाँचो भाय

152
राजनीति के सरौतां, करकै खंडे खंड
रहलै कना बिहार के, संस्कृति अबेॅ अखंड