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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-25 / दिनेश बाबा
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रक्षाबंधन के चलन, बनलो छै व्यापार
रक्षा के बदला हुवै, बेसी अत्याचार
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संकट लानै प्राण के, जहाँ पीलिया रोग
दुल्हन लेली शुभ छिकै, हल्दी के संयोग
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सहज रहै नैं खेल में, भारत पाकिस्तान
ऐ लेली सम्बन्ध भी, बनै कहाँ आसान
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सिरीराम आ कृष्ण जी, छिकै विष्णु के अंस
रावण मरलै राम सें, केशव हाथें कंस
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पापी छै कुलपूत हौ, जें कुल वृद्ध सताय
अंत करै छै एक दिन, वें पीढ़ी हो भाय
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पाप प्रबल जब होय छै, तब जनमै छै कंस
अपनों साथें लै डुबै, छै पापीं कुल वंस
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ऐ बातो के खोजियै, ‘बाबा’ कोय निदान
लोग जियै कहिनें भला, लै हाथोॅ पर जान
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बेकारी में हाल भी नै पूछै छै कोय
‘बाबा’ आदर मान दै, धन सम्पत जब होय