भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-29 / दिनेश बाबा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

225
प्राकृतिक आपदा छिकै, केना पैभो पार
ऐसौं भी कत्ते यहाँ, बढ़लै अत्याचार

226
पकड़ी केॅ देल्हो जहाँ, एक संत केॅ जेल
भोगो नी उत्पात हय, परकिरती रो खेल

227
झुट्ठो हुवै छै सच जहाँ, सच केॅ झूठ बनाय
महिमामंडित मत करोॅ, अंधा छेखौं न्याय

228
राजनीति लेली जहाँ, बंधन भर छै न्याय
फैली गेलो छै तहीं, अन्यायी सब आय

229
नेता लेली न्याय भी, दै छै खूबे ढील
ई बातो के लोग सब, खूब करलकै फील

230
लड्डू दोनो हाथ में, नेता जी के आय
चंदा राहत कोष के, आधा-आधी खाय

231
करी हवाई सर्वेक्षन, ऐलै अभी जहाज
राहत सें बनतै बहुत, नेता खुश छै आज

232
राजनीति सें अब जहाँ, दुख पावै छै संत
‘बाबा’ नेता के वहीं, सुख के छिकै न अंत