Last modified on 25 जून 2017, at 17:55

दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-2 / दिनेश बाबा

9
राम, लखन सिया जानकी, छै मानस के पात्र
छै हिनकर वाचन सुखद, जस दुर्गा-नवरात्र

10
मानस के अवदान छै, सब वेदो के सार
जेकर गोपन अर्थ छै, जन-जन के उद्धार

11
राम चरितमानस छिकै जीव-जगत वरदान
तुलसी नें पैलक तभी, जन-जन के सम्मान

12
राम कथा दै छै जहाँ, तन-मन में रस धार
पापी मन निस्प्राण पर, अमृत केरो फुहार

13
भगवत नाम सें होय छै, मन के दूर विकार
रस्ता गुरू देखाय छै, लानै हरि के द्वार

14
भगवत प्रीति से हुवै, दुरमति केरोॅ अंत
सत्य जगाबै छै मतर, केवल असली संत

15
रितु बसंत के छै समय, भेलै मोॅन मतंग
नस-नस में छै सनसनी, उमगै आठो अंग

16
फगनौठी हावा बहै, मन में उठै हिलोर
ताक-झांक नैना करै, बहकै दिल के चोर