भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-33 / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
257
भेलै नकलची संतति, अंगे्रजी में आज
लसुन कहाबै गारलिक, ओनियन छै पियाज
258
प्रेम वही शाश्वत छिकै, जहाँ न हो प्रतिदान
जकरा लेली जिन्दगी, नै मांगै बलिदान
259
अंत तलुक कायम रहै, जहाँ प्रेम के प्यास
ऐ लेली बस चहियो, आपस में विश्वास
260
सेहत लेली निर्धनें, कसरत करथौं रोज
स्वास्थ्य बनावै लेॅ वहीं, धनी पियै ग्लूकोज
261
मौसम होलो छै अबेॅ ‘बाबा’ दहसतगर्द
बरसातोॅ में सब जगह तहीं उड़ै छै गर्द
262
मौसम के भी देखियै, छै कत्ते आतंक
किरकेटोॅ के पिचो पर, भरलोॅमिलथौं पंक
263
हुरसो करै छै मौसमंे, बल्हौं जल वर्षाय
खेल भिंघाड़ी केॅ भाला, कोन खुशी वें पाय
264
खेलाड़ी जौं होतिहै, हौ इन्दर भगमान
टेस्ट मैच में रहतिहै, सदा साफ असमान