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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-34 / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
265
प्यासो ऐन्हों होय छै, करै जे विचलित मोॅन
दौलत के कहियो नहीं, प्यास बुझाबै धोॅन
266
प्रेम प्यास मंे होय छै, दू आत्मा के मेल
लोग भला की बूझतै, प्रेमो के ई खेल
267
बहुत दिनों के पनकलो, हुवै जबेॅ भी क्रोध
वें लै छै ‘बाबा’ विकट, दुश्मन सें प्रतिशोध
268
ढेर शिकारी बीच में, घिरलों एक शिकार
बात करै सब न्याय के, करनी में बटमार
269
बैचारिक मतभिन्नता, सें उपजै तकरार
जौं सच्चाई पर रहो, कभी न होथौं हार
270
नक्सल के साहित्य में, कुछ तेॅ छिकै जरूर
‘बाबा’ जानी लेॅ तभी, रोगो होतै दूर
271
माओवादी, नक्सली, छिकै सुनामी डोज
सैद्धदांतिक मतभेद सें बली चढ़ाबै रोज
272
नक्सलपंथी के जहाँ कायम छै सरकार
‘बाबा’ जिम्मेदार के, कतना छै दरकार