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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-39 / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
305
विदा होय केॅ जाय छै, लड़की जब ससुरार
मन में घूमै हर घड़ी, मिलतो कतना प्यार
306
गगन थामनें छै जना, टिटही केरो टांग
मुर्गां समझै दिन उगै, जब दै छै वें बांग
307
‘बाबा’ जकरा माय छै, सुखमय छै संसार
माता नांखी के भला, देबेॅ सकतै प्यार
308
घुन लगलो रं छै खुशी, दुख के होलै भीड़
हुरकुच्चो मौगी करै, नैं जे बनलै नीड़
309
छोड़ी देलक प्राण जें, करी अस्थि के दान
भेलै दधीचि यही लेॅ, दानी बड़ा महान
310
कोय गरीबी में कहाँ, ‘बाबा’ पूछै हाल
धन भेल्हौं, पुछथौं सभे, जब छो मालामाल
311
विश्वविजेता छै वही, जें जीतै हरबार
जे अच्छा खेलै नहीं, हुनका करो बहार
312
जस-जस आवी रहल छै, ‘बाबा’ निकट चुनाव
जे मुहरा जितवाय छै, बढ़लै हुनको भाव