भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-3 / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
17
अंग-अंग कस-मस करै, भेलै चंचल नैन
हेरै पिया के रास्ता, ठोर में अस्फुट बैन
18
छो महिना पर जब पिया, ऐलै अपनों घोॅर
हरखित होलै कामिनी, पर बिछुड़ै के डोॅर
19
चूना कत्था पान सें, जैसें निखरै रंग
मचतै फागुन वही ना, खूब पिया के संग
20
मौसम के साजिश छिकै, बढ़लै खूबे ठंढ
‘बाबा’ छुट्टी लेॅ तहूँ, जा घर, पेलो दंड
21
गुरू दीक्षा बदलै दिशा, लानै हरि के द्वार
मंजिल तक पहुँचाय छै, करथौं बेड़ापार
22
डोॅर लगै ‘बाबा’ कभूं, करियै कपि के ध्यान
पैलक हनुमत कृपा सें, तुलसी ने भगवान
23
राम-नाम जौनें लिये, ‘बाबा’ एक्को बार
पापी कत्तो छै मतर, पाबै छै उद्धार
24
नारी के मन जीतियै, करियै मिट्ठो बात
प्रेम मिलै छै प्रेम सें, विग्रह सें आघात