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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-44 / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
345
दौलत सें रूतबा बढ़ै, बढ़ै कुलो के मान
विद्या ही पांडित्य छै, जें दै छै सम्मान
346
काव्य ग्रंथ मानस जकां, नै होलो छै कोय
पारायन जे नित करै, सच में ज्ञानी होय
347
मौसम हय बरसात के, झम-झम बरसै मेह
ताप कहाँ, जल सें मिटै, कतबो भींजै देह
348
घुटुस-घुटुस पानी पियै, लागै जबेॅ तरास
ताप बढ़ै जब देह के, जाय पिया के पास
349
नै बरसैथौं ऊ घड़ी, रहै दूर जब मेघ
झलकै भले सरंग में, उजरो उजरो रेघ
350
छितरैलो रूईया जकां, लागै जबेॅ सरंग
ललचैथौं, पड़थौं नहीं, करथौं मेघेॅ तंग
351
वर्षा बूढ़ो होय छै, जब फूलै छै कास
मर्द न कभी बुढ़ाय छै, अहिने छै विश्वास
352
पच्छिम-उत्तर दिशा में, कारो मेघ लगाय
अंधड़ साथें निश्चिते, मेघां जल बरसाय