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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-53 / दिनेश बाबा

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417
शब्द विवसता करै छै, लोगो केॅ कमजोर
इच्छासक्ति छै जहाँ, वें देतै झकझोर

418
जोन विवसता सें हुवै, प्रायः लोग निरास
लानै छै दुस्साहसें, लोगोॅ में विस्वास

419
मन सें हारै छै वही, जे छै मिहनतचोर
जे खटतै विस्वास सें, वें पावै ईंजोर

420
कर्मठता लानै जहाँ, जिनगी में ईंजोर
मर्द आलसी के कभी आबै नैं छै भोर

421
जिनगी के उत्थान लेॅ, करो परिश्रम खूब
माटीं धूप-बतास सहै, तब उपजै छै दूब

422
आत्मोन्नति के वासतें, अनुसासन रख भाय
छान पगाहा के बिना, गैय्या नहीं दुहाय

423
जौने बेटी घर रखै, घुर-फिर करै जमाय
काम दमादोॅ सें ससुर, चाकर जकां कराय

424
घोर जमैय्या होय छै, जब कोनो दामाद
दमदुल्ली कहलाय छै, दमदा बनला बाद