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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-54 / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
425
सास-ससुर के घोॅर जे, हर दम जाय दमाद
आदर मानो जाय छै, बस कुछुवे दिन बाद
426
मांजै छै दुक्खें सदा, ‘बाबा’ रखियै याद
सुखद जिंदगी के मतर, डालै छै बुनियाद
427
भर जिनगी पैतें रहै, जें गलती सें सीख
पावै छै वरदान में, वहीं भाग्य के भीख
428
प्रेम छिकै अमरित जकां, क्रोध हृदय के कीच
दोनो ही मन में उगै, जे जी करै उलीच
429
वैरी केॅ देलेॅ करो, हँसी-हँसी में मात
यही हुनर संे एक दिन, जीते लगभो काँत
430
अंधेरा छै सब जगह, की घर की बाजार
विजली बिल ऐल्हौं, पढो ‘बाबा’ डिबिया जार
431
नेता केरो कद जकां, निकलै छै फरमान
वोटर बूझै छै सभे, कत्ते देतै ध्यान
432
उन्नति के सीढ़ी छिकै, श्रम साथें उत्साह
पैतै वें सोपान की, जहाँ फकत छै चाह