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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-56 / दिनेश बाबा

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441
रिक्साचालक रं कहाँ, मूक जानवर कोय
झेलै दुःख संताप पर, दिल में राखै गोय

442
कुली मोटिया आ श्रमिक, या कोनो मजदूर
सब के शोषण होय छै, जेभी छै मजबूर

443
धनवानें निज धोॅन के, जत्तेॅ करेॅ गरूर
ओत्ते होलो जाय छै, मानवता सें दूर

444
छिकै गनीमत मिलै छौं, सब के भर-भर कौर
काम नैं देथों नोट हय, आबै छै हौ दौर

445
सोंचो हुनको वासतें, जे कि छिकै बुनियाद
कहर सुनामी लहर जकां, करेॅ सकेॅ बरबाद

446
टिकलो छै अंगद जकां, भारत में गणतंत्रा
समतामूलक धारना, ही छेकै हौ मंत्रा

447
जे आवश्यक छै अभी, रोटी, वस्त्रा, मकान
सरकारो केॅ चाहियो, दियेॅ यही पर ध्यान

448
स्वारथ में सब लिप्त छै, छोटो दल के लोग
सत्ता पर काबिज रही, गुंडा करै छै भोग