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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-59 / दिनेश बाबा

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465
स्वच्छ प्रशासन के भला, देतै के परमान
भ्रष्ट प्रशासन ही छिकै, फँसतै हुनके जान

466
तहस-नहस दै छै करी, वानर आ हलुमान
कपि के छिकै सुभाव ई, सब कुछ करै जियान

467
हत्या, कारोबार रं, होबेॅ लगलै खूब
यौनशोषण करी गला, टीपै छै महबूब

468
जिनगी छिकै गरीब के, जैसें एक बलाय
जीना तेॅ दूभर छिकै, मौत छली केॅ जाय

469
जोगै में गठरी जकां, होलै भोरम-भोर
आँख लगल तंटा फसल, लै गेलै सब चोर

470
तीसो दिन जागी करी, जोगल रहय जिरात
पकलो फसल अन्हार में, कटलै पिछली रात

471
पारस सें लोहा सटै, लौह बनै छै स्वर्न
साधु संत करो संगति, करै आपनों वर्न

472
बढ़िया व्यंजन के कभी, कोय न भूलै स्वाद
विरह-मिलन प्रतिघात छन, रहै ढेर दिन याद