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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-5 / दिनेश बाबा

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33
चापलूस के होय छै, घी में दोनों हाथ
पकड़ाबै जौं कोय छै, नेतां दै छै साथ

34
मोंछ करै दाढ़ी मतर, बल्हौं धरलो जाय
धाकड़ छुट्टा घुरै छै, जोरल मिलथौं गाय

35
कोय जुगत ‘बाबा’ करो, हुए एक ठो घोॅर
घरनी के ताना सुनी, लागै छै अब डोॅर

36
की मिठाय के कल्पना, जहाँ न रोटी नून
अभियो सब केॅ नैं फुरै, भोजन दोनो जून

37
साफ करै साबुन जना, मैलो-कुच्चो तोॅन
भक्ति ज्ञान के दिया सें, दीप्त हुवै छै मोॅन

38
‘बाबा’ पेटू के जना, भोजन लगै लजीज
दुकनदार के वही ना, गाहक हुए अजीज

39
नेह ताप के रूप छै, जें दै सभे मिलाय
प्यार बिना दिलवर कभी, दिल में नहीं समाय

40
उम्र बढ़ै जौं जौं अधिक, बढ़थैं छै अनुराग
बसिया रसिया पर लगै, पिरियो बासी साग