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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-66 / दिनेश बाबा
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521
‘बाबा’ भैंसी रं बनो, चरी बुली जंे खाय
भरल पेट के बाद ही, लै ले दूध दुहाय
522
‘बाबा’ नैं तोहें कभी, बनिहो सुद्धी गाय
जकरा जे चाहै कहीं, पकड़ी केॅ लै जाय
523
बकरी जकां निरीह भी नै बनिहो श्रीमान
बेमतलब में कोय भी, रेती देथौं जान
524
खुराफात के जड़ छिकै, घर के मूषकराज
करै खिदरपत रात दिन, करथौं नष्ट अनाज
525
जेना बिल्ली मूस पर, आ कपोत पर बाज
‘बाबा’ दोन्हो पर गिरै, तहीं अचानक गाज
526
मुर्गी के अंडा जकां, धरती छै ई गोल
अंदर भारी तरल छै, कड़ा उपरला खोल
527
पेटो लेॅ अमृत छिकै, हरेॅ, आरोॅ सौंफ
‘बाबा’ नित सेवन करो, खा दोनों बेखौफ
528
कस्टसाध्य जिनगी छिकै, तबो घटै नै मोह
सुख में हर्षित होय सब, करथौं दुखी विछोह