भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-68 / दिनेश बाबा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

537
माया तेॅ अजगुत छिकै, के जानै लेॅ पाय
नारद तक होलै भ्रमित, की कहिहौं हो भाय

538
माया अति ठगिनी छिकै, नै बूझै छै कोय
काल-कर्म, स्वभाव, सहित, कुछ हद तक ही होय

539
माया ही छै अतिप्रबल, जै में शक्ति अपार
आज तलुक अजमाय में, के पैले छै पार

540
ज्ञान विमोहित करै में, माया छिकै समर्थ
मुनी, तपस्वी, ज्ञानियो, केॅ मोहै अव्यर्थ

541
करै चित्त के अनुसरण, दनुज, मनुज आ देव
रक्षा दुर्गा मां करै, आ रक्षै महदेव

542
माया छेकै सहचरी, रहै भवानी संग
मां दुर्गा के भक्त केॅ, करै न कभियो तंग

543
नैं माया के आदि छै, नै माया के अंत
नारी भेलै मर्द सें, नारद मुनी तुरंत

544
चेहरा पर झलकै चमक, रूख लागै नमकीन
‘बाबा’ यौवन पाय केॅ, कुतियो लगै हसीन