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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-72 / दिनेश बाबा

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569
बदली गेल छै संस्कृति, हँटलै अपनो लीक
शान मोंछ के हौ कहाँ, प्रतिष्ठा के प्रतीक

570
दिल प्रेमी के आजकल, पकलो जकां अनार
हर प्रेमी के प्रेमिका, ‘बाबा’ हुवै हजार

571
एक तरफ बढ़लै बहुत, जग में मिथ्याचार
ठीक वही अनुपात में, लोग करै व्यवहार

572
विज्ञापन पर आय कल, टिकलो छै व्यापार
व्यवसाय हुनकर बढ़ै, जौने करै प्रचार

573
‘बाबा’ कटुता सें कभी मत आबो तों पेश
हय जिनगी के बाद भी, रहै प्रेम ही शेष

574
हय जिनगी के बाद भी, रहथैं छै संसार
सब कुछ बीती जाय छै, याद रहै व्यवहार

575
‘बाबा’ लिट्टी दै मजा, चोखा केरोॅ साथ
मिर्च, लसुन, खट्टा, प्रमुख, घी चहियो इफरात

576
आॅटा, सत्तू, घी लसुन, खट्टा आ मरचाय
लिट्टी, चोखा, दै मजा, सब साथें जौं खाय