Last modified on 25 जून 2017, at 22:11

दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-79 / दिनेश बाबा

625
भ्रष्ट समूचा तंत्रा छै, लागै भ्रष्ट समाज
ऊपर सें छै गुंडई, जना कोढ़ में खाज

626
साँपो सें बेसी बहुत, फनियर भेलै लोग
निर्बल पर शासन करै, आ सुख के उपभोग

627
हिन्द, फिरंगी के समय, जे भोगलकै नर्क
आजो छै कुछ वही ना, बेसी नैं छै फर्क

628
‘बाबा’ नवयुग में अगर, लियेॅ सभैं संकल्प
होतै देशो के तभी, सचमुच कायाकल्प

629
मौसम नें भी आजकल, बदलै खूब मिजाज
‘बाबा’ मेघो के जगह, नभ में घुरै मिराज

630
पिछड़ी के अपनें गिरै, दै ऐंगना के दोष
गलती पर गलती करी, मत बनियै निर्दोष

631
राधा भी नाचै कना, जौं नहीं नौ मन तेल
सत्य पराजित लगै छै, लखी झूठ के खेल

632
नामों पर अंगिका के, छिकै संगठित लोग
भाषायी उन्माद छै, मातृप्रेम रं रोग