भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-83 / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
657
धर्म प्रबल पहिनें रहै, अभी प्रबल छै जात
साथ चलै दोनों मिली, तबेॅ नी बनतै बात
658
जै पर लछमी, सरोसती, दरपै एक समान
हुनखै सबठो सुख मिलै, धन-जन पूत, मकान
659
लछमी जौं किरपा करै, किसमत बढ़ै तुरंत
श्री विरधी, संतति बढ़ै, करै दुखो के अंत
660
बुतरू जुगना मन रहै, साधक जुगना ध्यान
कागा रं परयत्न संे, पार्थें पैलक ज्ञान
661
एकनिष्ट साधक बनै, रखै अडिग विश्वास
कुछ भी पाबै लेॅ करो, अर्जुन रं अभ्यास
662
दया, कृपा भगवान के, सगरो करै ईंजोर
कौने की करतै मदद, भाग छिकै कमजोर
663
बड़ी जरूरी छै हवा, जंगल नदी, पहाड़
सबकेॅ कायम रखै लेॅ, ‘बाबा’ करो जुगाड़
664
‘बाबा’ घर के काम में लगलो छै दिनरात
बरतन-बासन भी करै, रान्हो रोटी भात