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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-84 / दिनेश बाबा
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सास-ससुर, माता-पिता, केॅ जें राखै याद
‘बाबा’ सब्भै केॅ हुवै, अहिने, धिया दमाद
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ताबेदारी में रही, भेलै शेर बिलाय
बिन छानले दूहै जना, बिन लेरू के गाय
667
करै नौकरी सेठ के, पोसै पापी पेट
मर्यादा रहथौं जबेॅ, जी मूं रखो समेट
668
करै चकल्लस छै वही, जिनको छै माँ-बाप
जब अपना पर पड़ै छै, करै हाय रे बाप
669
जाहिल केरो दोसती, आ कागज के नाव
पता चलै छै हर घड़ी, आँटा दालक भाव
670
जीयो नै बेबस जकां, बनो मर्द आ शेर
टुकड़ा लेॅ जीयै भले, बिल्ली, कुत्ता ढेर
671
बड्डी लागै छै सुखद, सावन के बौछार
जना परस्पर वर-वधु, पावै पहिलो प्यार
672
कथा श्रृजन में जब कभी, हुहौं मोॅन उद्भ्रान्त
‘बाबा’ पढ़ियै शायरी, आ कुशवाहाकान्त