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दोहा मन्दाकिनी, पृष्ठ-9 / दिनेश बाबा
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लुकमा एक अमीर के, सौ गरीब के कौर
बुनियादी हय फरक के, कहिया मिटतै दौर
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हार-जीत रो पीबियै, करूवो-मिट्ठो घूँट
करबट जेभी बेठतै, राजनीति रो ऊँट
67
परकिरती पर मत करोॅ, जानी केॅ आघात
मौसम के सहभो कना, जब होथौं उत्पात
68
भेॅ रहलो छै रात दिन, जंगल के उच्छेद
पर्यावरन विनष्ट छै, नै ककरो छै खेद
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जहाँ विषैली गैस रो, होतै रोज रिसाव
वातावरन में अब वहाँ होबे करतै घाव
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‘बाबा’ समझी लहो नी, पर्यावरन के मोल
जीव मात्रा के जिन्दगी, छै सचमुच अनमोल
71
जे सामाजिक न्याय के, उठी रहल छै बात
सोचेॅ पड़थौं सही में, नैं तेॅ खैभो मात
72
समरसता सद्भाव के, छै अखनी दरकार
जेविचार के छै अभी, मौजूदा सरकार