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दोहा सप्तक-07 / रंजना वर्मा

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नयनों को भाने लगा, श्याम सलोना रूप।
प्यार साँवरे का लगे, ज्यों जाड़े की धूप।।

गली गली में हो रहा, कैसा है यह शोर।
सखियाँ ले मटकी छिपीं, आता माखनचोर।।

काले बादल घिर रहे, गगन रंग है श्याम।
पीताम्बर तड़िता बनी, रूप लगे अभिराम।।

मन - मंदिर में आ बसे, हैं जब राधे श्याम।
लेना क्या अब जगत से , दुनियाँ से क्या काम।।

वर्षा जल बरसा गयी, खिला गगन का रूप।
अभी घनेरी छाँव थी, चमक रही अब धूप।।

कलम हुई खामोश क्यों, क्यों चुप हैं सब भाव।
भरने वाली डायरी, आया निकट पड़ाव।।

भहर भहर भहरा गयी, बुधिया की दीवार।
बरखा डायन आय के, इज्जत गयी उघार।।