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दोहा सप्तक-21 / रंजना वर्मा

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चिंता कभी न कीजिये, चिंता चिता समान।
चिंता जीवित दाहती, चिता मृतक का मान।।

शीश काट भू पर रखे, चले धार तलवार।
प्रणय कोष पर जगत में, उसका ही अधिकार।।

गली गली रावण दिखें, कहीं न दीखें राम।
अवधपुरी से देश मे, रावण का क्या काम।।

पुतली की शुभ सेज पर, शयन कर रहा प्यार।
विघ्न बचाने के लिये, पलकों के ओहार।।

शरद पूर्णिमा आ गयी, नटखट नन्दकिशोर।
अनुपम रास रचे चलो, यमुना तट की ओर।।

रात गयी पियरा सखी, मनवाँ बहुत उदास।
दिन दिन धूमिल हो रही, पिया मिलन की आस।।

राम नाम जप कीजिये, कहिये राधेश्याम।
बना रहे विश्वास यह, भला करेंगे राम।।