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दोहा सप्तक-33 / रंजना वर्मा
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साँस साँस चढ़ने लगी, सुविधा क सोपान।
वाणी में घुलने लगा, जब से स्वागत गान।।
आँखों में तिरने लगा, जीवन का आकार।
हौले से सहला गया, नयी सुबह का प्यार।।
सुधियों की शुचि उँगलियाँ, रचें रंगोली द्वार।
हृदय धाम जगमग हुआ, दीप करे मनुहार।।
मेंहदी रची हथेलियाँ, अंकित प्रिय का नाम।
नयन पुतलियों में बसी, प्रिय की छवि अभिराम।।
मन घायल कैसे चलूँ, कदम कदम पर शूल।
रहे गुलमोहर सींचते, कैसे उगा बबूल।।
गलियों में कचपच मची, हुई वर्जना बाँझ।
दिनकर के मुख मल गयी, लो गुलाल फिर साँझ।।
खिला गुलमोहर झूम के, राग रंग के ठाट।
राही ठिठका देख कर, भूला अपनी बाट।।