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दोहा सप्तक-47 / रंजना वर्मा

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मौन भले जिह्वा रहे, मन होता वाचाल।
मन चुप रहना सीख ले, जीवन बने कमाल।।

नाम सदा भगवान का, करता बेड़ा पार।
चाहे नवयुग के बनो, चाहे रहो गंवार।।

छाँव नीम की है भली, दूर करे सब रोग।
गाँव गाँव मे आज भी, होता नित्य प्रयोग।।

प्राण रहे जब देह में, बन्धन का व्यामोह।
चाह मुक्ति की है अगर, तजो मोह अरु कोह।।

मात कृपा से आपकी, चलती कलम अमन्द।
सुधा सदृश बरसात यह, कभी न करना बंद।।

रहा नहीं संसार मे, सदा किसी का राज।
राजा उस को मानिये, जिस के सर पर ताज।।

अर्द्ध चन्द्रमा शीश पर, करता नित्य विहार।
जटा सुशोभित शम्भु के, श्री गंगा की धार।।